ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के पवन सानिध्य में अदिशकराचार्य जी की जयंती मनाई गयी वैशाख शुक्ल पंचमी को भगवान शंकराचार्य जी के रूप में आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व दक्षिण भारत मे केरल प्रान्त के कालरी नामक ग्राम में पिता शिवगुरु और माता आर्यमया की तपस्या से प्रसन्न होकर अवतरित हुए आठ वर्षों में समस्त वेदों को कण्ठस्थ करने वाले आदि शंकराचार्य जी ने 12 वर्ष की आयु में समस्त शास्त्रों को कंठस्थ कर लिया था 16 वर्ष की आयु में गीता,उपनिषद आदि पर भाष्य की रचना करने के बाद सम्पूर्ण भारत मे सनातन वैदिक धर्म की स्थापना करके 32 वर्ष में अपनी भौतिक लीला करने के लिए अपने वास्तविक शिव स्वरूप को हो गये
परमहँसी गंगा आश्रम में सर्वप्रथम अदिशकराचार्य जी की भूमिका विधिवत सडपोचार पूजन किया गया भगवान शंकराचार्य जी महाराज के प्रमुख शिष्यों द्वारा आदीशकराचार्य जी के दिव्य जन्म कर्म का गुणगान किया गया और दिवपीठाधीश्वर महाराज जी के पावन प्रवचन का लाभ भी उपस्थित श्रद्धालुओं को प्राप्त हुआ पूज्य महाराज के बताया की दुख की अत्यधिक निवर्ती और परमानंद की प्राप्ति को ही मुक्ति कहते है l प्रत्येक व्यक्ति मुक्ति चाहता है यह मुक्ति आत्मबोध से ही सम्भव है l जीव की एकता के ज्ञान से ही बंधन की मुक्ति होती है गुरु के द्वारा ही ज्ञान की प्राप्ति होती है l अदिशकराचार्य जी कलयुग के जगत गुरु है उनके सिद्धांत का अनुशरण करके ही मनुष्य का कल्याण हो सकता है वर्तमान में अदिशकराचार्य जी के सिद्धांतों को जनना और उसे अपने जीवन मे उतारना परम आवश्यक है इससे समस्त मानव जाति विशेषकर भारत वर्ष का प्राचीन गौरव पुनः प्राप्त हो सकता है धर्म के पालन से वैराग्य होता है वैराग्य से ज्ञान प्राप्त होता है।