आयोध्या-पूरे देश में घूम कर पैदल यात्राएं करने वाले हरिश्चंद्र विश्वकर्मा और कबीरा बाबा चाबी वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध। यह बाबा हमेशा अपने साथ 20 किलो की चाबी रखते हैं इनका कहना है कि इस चाबी से ही है लोगों के मन में बसे अंहकार के पट को खोलते हैं। बचपन से अध्यात्म का रुझान था 16 वर्ष की उम्र से इन्होंने संन्यास ले लिया और उसके बाद दुनिया की बुराइयों और भ्रष्टाचार को दूर करके उन्होंने एक बेहतरीन समाज की कल्पना की। जिसके निर्माण की संकल्प को लेकर यह घूमते रहते हैं। इनकी जन्म भूमि उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के धौरहरा में है। पहले वे पैदल ही चला करते थे पर पिछले साल एक कार एक्सीडेंट में पैर टूट गया। जिससे ये मजबूर हो गये हैं।
इसके बाद बाबा ने एक स्कूटी ली और निकले धौरहरा रोहनियाँ रायबरेली से और कृपालु महाराज के प्रेम मंदिर मनगढ़ कुन्डा प्रतापगढ़ गये वहाँ से चित्रकूट गये चित्रकूट से प्रयागराज श्रृंगवेरपुर पुर फिर घुइसरनाथ धाम प्रतापगढ़ अब प्रतापगढ़ से अमेठी सुल्तानपुर होते हुये आजमगढ़ जायेंगे ।तमसा नदी जिसे राम ने वन को गमन करते हुये पार किया था।
तब अयोध्या पहुँचने का कार्यक्रम है।
हजार बारह सौ किलोमीटर की यात्रा करके श्री राम मंदिर के भूमि पूजनि कार्र्यक्रम में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए निकल पड़े है।
बिना विश्वकर्मा के किसी भी निर्माण की कल्पना ही नहीं होती है।
देवताओं के आदि इन्जीनियर भगवान विश्वकर्मा के प्रतिनिधि के रूप में ये बाबा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में सम्मिलित होंगे।
इसी क्रम में कामतानाथ चित्रकूट धाम की दर्शन परिक्रमा करता हए श्रृंगवेरपुर प्रयागराज आए।
यह वही श्रृगवेरपुर है जहाँ से श्री राम जी ने वनगमन करते हुये माँ गङ्गा को पार किये था। यहीं निषादराज से सम्वाद हुआ था।
यहाँ से प्रतापगढ़ आगे आजमगढ़ होते हुये दो या तीन को अयोध्या पहुँचने का कार्यक्रम है।
कबीरा बाबा चाभी वाला सत्य_साधना केन्द्र सत्यान्वेषी आश्रम लखनऊ के एकल साधक हैं ।