जबलपुर। इस वर्ष हर त्यौहार की तरह जन्माष्टमी के त्यौहार पर भी कोरोना का संकट मंडरा या हुआ है इसलिए जन्माष्टमी के इस पर्व को पहले की तरह सार्वजनिक और पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ मनाना तो संभव ना होगा लेकिन कोरोना की प्रोटोकॉल का ध्यान में रखते हुए जन्माष्टमी मनाई जाए तो बेहतर होगा। जन्मोत्सव पर्व: 11 या 12 अगस्त, आखिर कब मनाई जाएगी जनमाष्टमी? हर कन्फ्यूजन को करें दूर । अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिषाचार्य डॉ.अर्जुन पाण्डेय के अनुसार -भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। लेकिन कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है कि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों एक ही दिन नहीं होते। इस बार भी कृष्ण जन्म की तिथि और नक्षत्र एक साथ नहीं मिल रहे हैं। 11 अगस्त को सुबह 9 बजकर 07 मिनट के बाद अष्टमी तिथि का आरंभ हो जाएगा, जो 12 अगस्त को 11 बजकर 17 मिनट तक रहेगी। वहीं रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 13 अगस्त को सुबह 03 बजकर 27 मिनट से 05 बजकर 22 मिनट तक रहेगा।
शास्त्रों में इस तरह की उलझनों के लिए एक आसान सा उपाय बता गया है कि गृहस्थों को उस दिन व्रत रखना चाहिए जिस रात को अष्टमी तिथि लग रही है। पंचांग के अनुसार, 11 अगस्त दिन मंगलवार को गृहस्थ आश्रम के लोगों को जन्माष्टमी का पर्व मनाना सही रहेगा क्योंकि 11 की रात को अष्टमी है। गृहस्थ लोग रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें, दान और जागरण कीर्तन करें और 12 अगस्त को व्रत का पारण करें और कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाएं, जो कि श्रेष्ठ एवं उत्तम रहेगा। वहीं जो लोग वैष्णव व साधु संत हैं उनको 12 अगस्त को व्रत रख सकते हैं। 12 अगस्त को सुबह 11 बजकर 17 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी और उसके बाद नवमी तिथि लग जाएगी। द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता हैं, जिनमें भारी भीड़ होती है। भगवान के श्रीविग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढ़ा ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिड़काव करते हैं तथा छप्पन भोग का महाभोग लगाते है। वाद्ययंत्रों से मंगल ध्वनि बजाई जाती है।
जगदगुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है। सम्पूर्ण ब्रजमंडल, नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैय्या लाल की जैसे जयघोषों व बधाइयों से गुंजायमान होता है।
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजा
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और भक्ति के लिए उपवास करें। अपने घर की विशेष सजावट करें। घर के अंदर सुन्दर पालने में बालरूप श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करें। रात्रि बारह बजे श्रीकृष्ण की पूजन के पश्चात प्रसाद का वितरण करें। विद्वानों, माता-पिता और गुरुजनों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लें। इसके साथ ही यह ध्यान रखें कि परिवार में कोई भी किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन बिल्कुल न करे। इस दिन के लिए आप अपने घर को सजा सकते हैं।